Answered • 30 Sep 2025
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स्वामी विवेकानंद ने कर्मयोग को समझाया, जिसका अर्थ है बिना किसी फल की अपेक्षा के अपना कर्तव्य निभाना। उन्होंने कहा था कि 'कर्म ही पूजा है'। उनका मानना था कि हमें अपने हर काम को पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ करना चाहिए। निष्काम कर्म से मन शुद्ध होता है और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। कर्मयोग हमें सिखाता है कि हर काम को ईश्वर की सेवा मानकर करना चाहिए।